- डिजिटल (digital) दुनिया में आज हम सभी जाने-अनजाने, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, चाहे-अनचाहे रूप में सूचना-संचार-प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी) के उपयोगकर्ता हो ही गए हैं। यह हमारी बैंकिंग प्रणाली ही नहीं, अपितु व्यक्तिगत, पारिवारिक, साँस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग बन गई है। हम हर रोज़ सूचना-संचार-प्रौद्योगिकी से संबंधित कई ऐसे शब्दों व अवधारणाओं (कॉन्सेप्ट) का उपयोग, अपनी आम बातचीत में करते हैं, जो आज से 15-20 साल पहले नहीं करते थे या बहुत कम करते थे या कुछ विशिष्ट लोग विशिष्ट अवसरों पर उनका उपयोग करते थे।
- हम इन शब्दों और अवधारणाओं का बोलचाल में उपयोग तो करते हैं परंतु यदि हमारे घर का ही कोई छोटा बच्चा या और कोई, हमसे उनकी परिभाषा या वास्तविक आशय/अर्थ पूछे, तो हम सही ढंग से उसे समझा नहीं पाते या सही व सरल शब्दों में उसका तात्पर्य अभिव्यक्त नहीं कर पाते।
- इस आलेख में ऐसे ही कुछ प्रश्नों के माध्यम से इन मूलभूत शब्दों व अवधारणाओं को सरल और सहज भाषा में समझने का प्रयास किया गया है।
डिजिटल (Digital) दुनिया में अधिकतर लोग मानते हैं कि इंटरनेट (Internet) एवं वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) एक ही हैं, इनमें कोई अंतर नहीं है, परंतु वास्तव में ये दोनों एक ही नहीं हैं, ये दोनों अलग-अलग अवधारणाएँ हैं।
वेब, एक सॉफ्टवेयर अनुप्रयोग/एप्लीकेशन या सेवा है जिसे इंटरनेट पर चलाया जाता है। वेब, दस्तावेज़ों एवं संसाधनों का एक संकलन या संग्रह है। कहा जा सकता है कि इंटरनेट एक माध्यम है और वेब उस माध्यम पर चलने वाला अनुप्रयोग है।
इन दोनों अवधारणाओं को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-
- इंटरनेट से तात्पर्य है- एक-दूसरे से जुड़े हुए कई कंप्यूटरों का विश्वव्यापी नेटवर्क। जब हम इंटरनेट से जुड़ते हैं, तब हमारी पहुँच वर्ल्ड वाइड वेब तक हो जाती है।
- इंटरनेट, एक वैश्विक संचार नेटवर्क कहा जा सकता है, जो विश्व के लाखों कंप्यूटरों व इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों को आपस में जोड़ने एवं जानकारियों/ सूचनाओं का पारस्परिक विनिमय करने की सुविधा और अनुमति देता है।
- इसमें एक कंप्यूटर का उपयोगकर्ता किसी दूसरे कंप्यूटर से सूचनाएँ या जानकारियाँ प्राप्त कर सकता है।
- ‘इंटरनेट’ शब्द का वास्तविक अर्थ ‘नेटवर्कों का नेटवर्क’ है। इंटरनेट का कोई भी ‘स्वामी’ नहीं है, अपितु, एक साथ जोडने वाली कुछ कंपनियाँ हैं जो नेटवर्क के विभिन्न भागों का प्रबंधन करती हैं।
- विभिन्न देशों में नेटवर्क को विभिन्न प्रायोजक होते हैं, जो वित्तीय सहायता देते हैं और स्थानीय प्रक्रिया व कानूनों के अनुसार प्रबंधन करते हैं।
- वर्ल्ड वाइड वेब को विश्व व्यापी संजाल भी कह सकते हैं।आज से 26 वर्ष पूर्व, 12 मार्च, 1994 को इसकी स्थापना हुई। एक अंतरराष्ट्रीय परिषद् के रूप में वर्ल्ड वाइड वैब कंसोर्शियम (World Wide Web Consortium) संगठन की स्थापना की गई, जिसे संक्षेप में डब्ल्यू3सी (W3C) के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना का श्रेय श्री टिम बर्नर्स ली को जाता है, जिन्होंने इस कंसोर्शियम की अवधारणा को मूर्त रूप प्रदान करने में काफ़ी श्रम किया।
- डब्ल्यू3सी (W3C) का उद्देश्य सभी राष्ट्रों के लिए एक समान और सर्वस्वीकृत तकनीकी मानकों, निकायों को प्रामाणिक एवं मानक के रूप में स्थापित करना है तथा इस प्रक्रिया में अंतरराष्ट्रीय रूप से तटस्थता बरती जाती है। इसका मुख्यालय फ्रांस में है।
- डब्ल्यू3सी एक साथ इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स(IETF), वायरलेस अनुप्रयोग प्रोटोकॉल (WAP) तथा यूनिकोड कंसोर्शियम के रूप में अन्य मानको के विभिन्न संगठनों के साथ समन्वय स्थापित करते हुए कार्य करता है।
- आजकल क्लाउड कंप्यूटिंग (Cloud Computing) शब्द बहुत ज्यादा सुनाई दे रहा है। वैसे देखा जाए तो हम जितनी भी बार इंटरनेट का उपयोग करते हैं, क्लाउड कंप्यूटिंग के कई रूपों में से, एक रूप उपयोग कर रहे होते हैं। हम इंटरनेट पर जो भी जानकारी खोजते हैं वह दुनिया भर के विभिन्न स्थानों से विभिन्न सर्वरों से प्राप्त करते हैं।
- हम चाहे इंटरनेट पर कोई वीडियो देख रहे हों, संगीत सुन रहे हों या समाचार पढ़ रहे हों, हम उस समय हम अपने कंप्यूटर/पीसी की हार्ड ड्राइव से नहीं, अपितु क्लाउड कंप्यूटिंग के माध्यम से ही सूचना या जानकारी प्राप्त कर रहे होते हैं। तो फिर सवाल पैदा होता है कि यह नया नाम क्यों दिया गया।
- वास्तव में, अभी हाल के वर्षों में इंटरनेट और वैब सेवाओं में हमें और अधिक ऑफ़र या सुविधाएँ मिलने लगी हैं, जैसे कि – अब हम अपनी व्यक्तिगत फ़ाइलों को दुनिया के किसी भी भौगोलिक स्थान पर स्थित सर्वर में सुरक्षित रखने के लिए अपलोड भी कर सकते हैं, किसी भी कंप्यूटर का उपयोग, दुनिया के किसी-भी कोने से सकते हैं, मानो वह हमारा अपना कंप्यूटर हो और हमारे सामने ही हो।
- इन अतिरिक्त सुविधाओं को जोड़ कर समेकित रूप से जो इंटरनेट/वैब के माध्यम से ऑनलाइन काम किया जा सकता है उसे क्लाउड कंप्यूटिंग की संज्ञा दी जा रही है। इससे हमें अपने किसी एक कंप्यूटर में वायरस आने, हार्ड ड्राइव क्रैश होने या व्यक्तिगत इंसानी गलतियों के कारण अपनी सूचनाएँ/फ़ाइलों आदि खो बैठने से सुरक्षा मिलती है।
- यदि क्लाउड कंप्यूटिंग को सरल शब्दों में समझना हो तो इसे इस प्रकार से समझा जा सकता है।
- अभी तक हम इंटरनेट और वैब सेवाओं रूपी एक तरफ़ा मार्ग पर चल रहे थे, अब उस मार्ग को दो-तरफ़ा ही नहीं, अपितु बहु-तरफ़ा और बहु-उपयोगी बना दिया गया है। इसे ही क्लाउड कंप्यूटिंग कहा जा रहा है।
- हम हमेशा समाचारों में देखते-सुनते हैं कि असामाजिक तत्वों और अपराधियों द्वारा भेजे गए ईमेलों के माध्यम से पुलिस उन तक पहुँच जाती है। आखिर ऐसा कैसे होता है, जबकि ईमेल तो इंटरनेट से भेजा जाता है और इंटरनेट तो अथाह सागर है, पुलिस कैसे ईमेल को ट्रेस करके अपराधी को पकड़ती है? इसी प्रश्न का उत्तर है- आईपी पता (IP Address), इसका पूरा नाम है – इंटरनेट प्रोटोकॉल पता (Internet Protocol Address)
- प्रत्येक वैब पते (जैसे google.com) को हम लिखते तो अक्षरों में हैं, परंतु प्रत्येक वैब पते का अपने एक विशिष्ट संख्या वाला पता होता है, जिसे आईपी (IP) पता कहते हैं, जो इस तरह दिखता है: 172.16.4.116. यह पता उस कंप्यूटर सर्वर उपकरण तक पहुँचा देता है जिस पर वैबसाइट स्थापित हो कर चल रही होती है और जिससे ईमेल आदि भेजा जाता है।
- प्रत्येक कंप्यूटर उपकरण का अपना विशिष्ट आईपी (IP) पता होता है, जो संख्याओं की एक श्रृंखला होती है, जिससे इंटरनेट पर किसी विशिष्ट कंप्यूटर या मोबाइल उपकरण की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान होता है। आईपी (IP) पता हमारे कंप्यूटर को यह बताता है कि इंटरनेट पर अन्य कंप्यूटरों से संपर्क कैसे किया जाए। प्रत्येक आईपी पते से संबंधित कंप्यूटर/उपकरण संबंधी कई प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त हो जाती है, जैसे-
- उसके इंटरनेट सेवा प्रदाता / आईएसपी (Internet Service Provider / ISP) का नाम तथा कार्यालय/संगठन का नाम,
- उसका आईपी होस्ट का नाम क्या है,
- वह कंप्यूटर किस देश में है,
- उसके भौगोलिक क्षेत्र/राज्य का नाम,
- शहर का नाम, जहाँ वह कंप्यूटर मौजूद है,
- उस जगह की अक्षांश (latitude) और देशांतर (longitude) स्थिति
- उस क्षेत्र का कोड/पिन (एरिया कोड)
- उस कंप्यूटर/उपकरण से चल रही अन्य सेवाओं की जानकारी
- उक्त समस्त जानकारियाँ पुलिस को किसी भी अपराधी तक पहुँचने में बहुत मददगार होती हैं।
कंप्यूटर सेवाओं को हानि पहुँचाने वाले तत्व कौन-से हैं?
- सामान्य रूप से आम बोलचाल की भाषा में यदि हमारे कंप्यूटर उपकरण में अनजान या अज्ञात कारणों से कोई खराबी आ जाती है या कोई सॉफ्टवेयर ठीक से काम नहीं करता, बार-बार कंप्यूटर अपने-आप शट-डाउन होने लगता है, तो हम कहते हैं कि शायद कोई वायरस वगैरा आ गया है। परंतु कंप्यूटर सेवाओं को हानि पहुँचाने वाले विभिन्न शरारती तत्वों में वायरस अकेला ही नहीं होता। ऐसे शरारती तत्व, कई प्रकार के होते हैं, जिन्हें मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
मालवेयर, एक सॉफ़्टवेयर होता है, जो किसी-भी कंप्यूटर या मोबाइल उपकरण को नियंत्रित कर सकता है या उसे हानि/क्षति पहुँचाने के लिए ही डिज़ाइन किया जाता है। इसे निम्न 5 प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-
i. वायरस (Virus)- यह किसी सॉफ़्टवेयर का एक हानिकारक भाग/अंश होतो है जो हमारे कंप्यूटर और उसमें मौज़ूद फ़ाइलों को खराब या संक्रमित कर सकता है। |
ii. एडवेअर (Adware)- कई बार हम देखते हैं कि इंटरनेट से जुड़ते ही हमारी स्क्रीन पर अनचाहे विज्ञापन दिखने लगते हैं, जबकि हम उन्हें नहीं चाहते, यह एडवेयर से होता है। एडवेयर, एक ऐसा सॉफ़्टवेयर होता है, जो किसी कंप्यूटर पर अवांछित और अनचाहे विज्ञापनों को अपने आप चलाता है, या डाउनलोड तक कर देता है। |
iii. स्पायवेयर (Spyware)– कई बार हमें अज्ञात लोगों/कंपनियों से अनचाहे ईमेल या एसएमएस आदि प्राप्त होते हैं जिनमें हमारी व्यक्तिगत जानकारियों (जैसे- शहर, रुचि, फोननंबर आदि) का जिक्र होता है, जबकि हमने उन्हें वह जानकारी नहीं दी होती। ऐसा कैसे होता है? दरअसल, यह काम स्पायवेयर करता है वह सॉफ़्टवेयर जो उपयोगकर्ताओं से छुपाकर उनकी छोटी-छोटी जानकारी एकत्रित करता है। |
iv. ट्रोजन हॉर्स (Trojan Horse)– यह एक प्रकार का नुकसानदायक सॉफ़्टवेयर होता है जो आरंभ में हमें एक उपयोगी एप्लिकेशन होने का दिखावा करता है। आरंभ में यह सॉफ़्टवेयर थोड़ा उपयोगी महसूस होता है, परंतु बाद में यह कंप्यूटर या मोबाइल से सूचना/जानकारी चोरी करने लगता है और कंप्यूटर को क्षति पहुँचाता है। |
v. वॉर्म (Worm) – यह भी किसी सॉफ़्टवेयर का एक हानिकारक अंश या भाग होता है जो स्वयं ही किसी-भी कंप्यूटर में स्वयं को फैलाने की क्षमता रखता है। |
फ़िशिंग, ऑनलाइन तरीकों से धोखा देने या कपट करने की प्रक्रिया है। जिस प्रकार मछली को काँटे में खाद्य पदार्थ अटका कर फ़ँसाया जाता है उसी प्रकार इसमें किसी बैंक/संस्था की नकली वैबसाइट बना कर धोखा दिया जाता है। उसमें क्लिक करते ही हम नकली वैबसाइट में अपनी गोपनीय सूचनाओं की प्रविष्टि करने लगते हैं और उन सूचनाओं का बाद में दुरुपयोग किया जाता है। इसमें शिकार को बेवकूफ़ बनाकर उनसे संवेदनशील जानकारी जैसे कि पासवर्ड या क्रेडिट कार्ड जानकारी साझा करवा ली जाती है। यह सामान्यत: ईमेल, विज्ञापनों या अन्य माध्यमों से किया जाता है। शिकार को एक ऐसा संदेश भेजा जाता है, जो दिखने में वास्वविक बैंक का लगे।
कई बार हमारे ईमेल बॉक्स में अज्ञात व्यक्तियों से बहुत बड़ी संख्या में अवांछित संदेश प्राप्त होते हैं। इस प्रकार से अंधाधुंध अवांछित बल्क संदेश भेजने के लिए ईमेल प्रणालियों दुरुपयोग किया जाता है। इन संदेशों के साथ खतरनाक मैलवेयर भेजे जाते हैं।
इन शरारती तत्वों या ख़तरनाक प्रणालियों से बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम-
(i) अपने सुरक्षित और मज़बूत पासवर्ड बनाएँ,
(ii) उन्हें नियमित अंतराल पर (लगभग एक महीने बाद) बदलते रहें,
(iii) अपने कंप्यूटरों/मोबाइल उपकरणों में पायरेटेड नहीं, अपितु लाइसेंस-युक्त असली एंटीवायर/सुरक्षा सॉफ्टवेयरों उपयोग करें और
(iv) अपनी गोपनीय सूचनाओं/पासवर्ड आदि को किसी के भी साथ, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से साझा/शेयर न करें।
- आईटी की दुनिया में ये शब्द भी बहुत उपयोग में आता है। मुक्त स्रोत (ओपन सोर्स) की अवधारणा (कॉन्सेप्ट) समझने के लिए हमें सबसे पहले यह जानना होगा कि स्रोत कोड (सोर्स कोड) का क्या मतलब होता है।
- स्रोत कोड (सोर्स कोड) कंप्यूटर की वह विशिष्ट प्रोग्रामिंग भाषा है, जिसमें विभिन्न प्रकार के सॉफ़्टवेयर लिखे और विकसित किए जाते हैं। विभिन्न प्रकार के वैब-ब्राउज़र और एप्लीकेशनें (एप्प) विकसित करने के लिए जो कोडीय भाषा उपयोग में आती है और जो किसी भी सॉफ़्टवेयर को संचालन और व्यवहार करने के तरीके बताती है, उसे स्रोत कोड (सोर्स कोड) कहते हैं।
- मुक्त स्रोत (ओपन सोर्स / open source) से मतलब ऐसी कंप्यूटर भाषा से है जिसके कोड सभी को देखने के लिए मुक्त / ओपन हैं, उन्हें किसी ने व्यावसायिक उपयोग हेतु छुपा कर नहीं रखा है, और हम उनका उपयोग, दूसरी एप्लीकेशनों/उत्पादों या सेवाओं के लिए कर सकते हैं, इसे ट्वीक कर सकते हैं या कहीं-भी जोड़ सकते हैं और पुनः उपयोग भी कर सकते हैं। इसके लोकप्रिय उदाहरण हैं- वेब ब्राउज़र – क्रोम (Chrome) और फ़ायरफॉक्स (Firefox) .
- डोमेन नाम (Domain Name) से तो हम सभी परिचित हैं। किसी भी वैबसाइट तक पहुँचने के लिए हम डोमेन नाम टाइप करते हैं।
- कल्पना कीजिए यही नाम यदि लैटिन/रोमन लिपि के बजाय विश्व की अन्य लिपियों (जैसे- देवनागरी, बांग्ला, तमिळ आदि) में लिखा जाए तो क्या होगा।
- अभी तक पूरे विश्व में केवल लैटिन/रोमन में ही डोमेन नाम पंजीकृत करवाए जा सकते थे, पंरतु अब यह विश्व की अन्य चुनी हुई लिपियों में भी पंजीकृत/रजिस्टर्ड करवाना संभव हो गया है। भारत में 15 अगस्त, 2014 से भारत की 07 लिपियों (देवनागरी, बांग्ला, तमिळ, तेलुगु, गुजराती, उर्दू और गुरुमुखी/पंजाबी) में किसी-भी वैबसाइट का डोमेन नाम पंजीकृत करना संभव हो गया है। अब हम अपनी वैबसाइट का नाम इस प्रकार से देवनागरी में भी पंजीकृत करवा सकते हैं.
- इसे ही अंतरराष्ट्रीयकृत डोमेन नाम (आई.डी.एन.) / Internationalized Domain Names (IDNs) कहा जाता है। सार रूप में इसे गैर-आस्की (Non-ASCII) या गैर-लैटिन लिपियों (Non-Latin Scripts) अर्थात् यूनिकोड (Unicode) में पंजीकृत/रजिस्टर्ड करवाए जाने वाले डोमेन नाम कहा जा सकता है।
- इसका उद्देश्य विश्व की सभी भाषा-लिपियों का उपयोग इंटरनेट और विश्व व्यापी वेब (www) में बढ़ाना है। इससे विश्व की आम जनता तक इंटरनेट और विश्व व्यापी वेब (www) का विस्तार हो सकेगा।
- इस बारे में, अधिक जानकारी के लिए यह वेबसाइट देख सकते हैं – https://vikaspedia.in/e-governance/digital-india/domain-in-local-indian-languages